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बचा लो महा मृतुन्जय

हमको तो आजकल बहुत सारे हल्ले सुने दे रहे हैं . कभी बर्ड फ़्लू का हमला, तो कभी स्वेन  फ़्लू का अटक  कभी ग्लोबल वार्मिंग का खतरा , कभी असमान में छेद क्या कहते हैं ये लोग कि ओज़ोन लयेर . कभी कीटाणुओं का अटैक . ग़रीब आदमी को तो ये धंदे करने के और अपना माल खपाने के  इंटरनाशानल तरीके ज्यादा लगते हैं. नया शगूफा नहीं सुना अपने, आकाश से चट्टानें आ रही हैं प्रथ्वी से टकराने  और सारी सृष्टि  नष्ट होने वाली है. अब घबराहट में आप क्या करेंगे , इस चट्टान से दुनिया को बचाने के लिए आप कहाँ जायेंगे. कुछ साल पहले एक स्काई लैब आ रहा था पृथ्वी से टकराने और बहुत हल्ला मचा के दुनिया ख़तम. बेचारे ग़रीब आदमी ने खूब पूजा पाठ कराया , खूब मिन्नतें कि बचा लो , बच गए. खैर वो पुराना टाइम था . अब ग़रीब आदमी को थोडा थोडा समझ में आ रहा है कि माजरा क्या है ये सब.

दर्शन

कभी सुबह सुबह भजन माइक पर सारे मोहल्ले का मुफ्त अलारम . कभी सरे रात रतजगा. प्रसादी के चक्कर में हम भी घूम आते हैं . घंटी नहीं हो गयी बच्चो का खिलौना हो जैसे , बेटे तू भी बजा . गोदी में आजा अब बजा जोर के . अलग अलग लोग अलग अलग घंटी. कुछ ऐसे होते हैं कि जैसे भगवन कम सुनते हैं. दनादन बजायेंगे . भगवन तो ठीक आसपास के कुत्ते भी सकपकिया जाते हैं. कुछ एक बार टिन तो कोई तीन तक गिनते हैं. कोई अपना संगीत का हुनर दिखाना चाहते हैं. ताल और लय का पाठ पढ़ा देते हैं. बड़े बड़े सौदे हो जाते हैं. भगवन मेरी ज़मीन का मामला निपटा दो बस मैं सोने का मुकुट बनवा दूंगा. मेरी प्रोमोशन रुक गयी है. मेरी कुर्सी बड़ी कर दे चार कुर्सियां यहाँ लगवा दूंगा. कतल में मेरी सजा कम करवा दो गुम्बद सोने का बनवा दूंगा. औरते अपना अलग इमोशनल सीन बनाती हैं. भगवान दूध छोड़ दिया है , सफ़ेद चीज़ खाना छोड़ दिया है. पीला पहनना छोड़ दिया है. सोलह सोमवार कर रही हूँ, ग्यारह बुधवार कर रही हूँ. बस गुडिया कि शादी अच्छी जगह करवा दो. इनकी शराब कि आदत छुड़वा दो , उस कलमुही से दूर करवा दो. हमारा घर बनवा दो. कार छोटी पड़ती है . बच्चे बड़े हो गए हैं

JACK

जैक आजकल बहुत महत्वपूर्ण शब्द हो गया है. जैक के बिना कोई काम नहीं होता . ये हर जगह मौजूद है. नौकरी में , गैस कि टंकी में, नगर निगम में, कलेक्टर में सभी जगह , यहाँ तक कि भगवन के मंदिर में भी . अब मंदिर भी अलग अलग स्टेटस वाले होते हैं. कोई छोटा गुमटी नुमा , कोई जबरिया कब्जेधारी का पर्सनल , कोई बड़े नामधारी, कोई फेमस . जहाँ लाइन लगती है , उनके भी अलग अलग महिमा है. कोई दिन वाले है कोई रोज़ कि भीड़ वाले हैं. भीड़ वाले मंदिर में जैक लगाना पड़ता है. कोई ग़रीब भक्त अब सीधे सीधे भगवन से बात कर ले ये थोडा मुश्किल काम है. आपको धक्का पलेट दर्शन करना पड़ेंगे . कोई पुलिसिया टाइप वर्दी में आपको धकियायेगा आगे चलो और लोग भी हैं. के तुम्ही के लिए थोड़ी बैठे हैं. पर आप बहार लगी धार्मिक दुकानों कि दुकानदारी बढ़ा कर आइये . दस बीस रूपए के फूल , नारियल इत्यादि ले के आईये . तो एकाध मिनट खड़े होने आराम से मिल जायगा . फिर साथ में मिठाई वगैरह भी हो तो थोडा और भगवन से बात हो सकती है. अब आपको स्पेशल दर्शन करने हों तो फिर पुजारी के लिए भी कुछ चढावा ? और अगर फ्री फोकट के दर्शन करना हो तो उसके अलग जैक हैं. या तो आप कोई

साक्षरता मिशन

साक्षरता मिशन के सम्मलेन में चीफ गेस्ट ने कांफुजियाया अपने साथ आये दोस्त से . इस मिशन से एक बड़ा नुकसान हो रहा है भाई , साक्षरता के नाम पर सभी को बस अपना नाम लिखना पढना सिखा देते हैं. और उसके बाद साहूकार लोग अब कागज़ पर दस्तखत करवा लेते हैं. कोई कोरतबाज़ी हुई तो साहूकार साक्षरता का certificate पकड़ा देते हैं. बेचारा ये भी नहीं कह सकता कि वो अनपढ़ है. कागज़ में क्या लिखा है उसे नहीं पता साक्षरता का certificate जो है उसके पास.

धरती का बोझ

धरती का बोझ है ये . दिन भर खाट  तोड़ता रहता है. चार दोस्त मिल जाते हैं और बस दिन भर मटरगश्ती. ये भी नहीं सोचता कि माँ बाप ने कितना पैसा खर्च कर दिया इसकी पढाई पर . कैसे कैसे पापड़ नहीं बेले . कितनी हसरतें रह गयी कि बिट्टू पढ़ जायेगा. कुछ बन जायेगा . परिवार पलेगा , बाप का नाम करेगा. पर नहीं .  पता नहीं कितनी जगह तो अर्जी लगा चुका है कितने interview  दे चुका है. कहीं से एक चिठ्ठी नहीं आती.  और सारा इलज़ाम हम पर थोपता है, कहता है आजकल सिफारिश चाहिए और वोह भी बड़ी .  सरकारी नौकरी न सही कोई प्राइवेट ही दूंड ले . साहेब बड़े अफसर के ख्वाब नहीं छुटते. और मेहनत मजदूरी में कहे कि शर्म . पर अफसरी का शौक है साहेब को .  पड़े रहेंगे धरती पर बोझ बने. 

निवास का certificate

मूल निवासी का सर्टिफिकट बनवाना पड़ेगा . नौकरी कि अर्जी के साथ ज़रूरी है. बड़े अजीब कायदे कानून हैं. अरे हम पैदा यहाँ हुए हैं कि नहीं इसका भी सर्टिफिकट दुसरे देंगे . अब कलेक्टर बताएगा कि सर्टिफिकट नहीं देगा तो क्या हम यहाँ पैदा नहीं हुए . पूरा खानदान बोले चाहे कि ये यहीं कि पैदाइश है पर कलेक्टर ने मना कर दिया तो हो गयी छुट्टी . अब ये भी नियम होना चाहिए कि भाई अगर हम यहाँ नहीं पैदा हुए तो कलेक्टर बताये कि हम कहाँ से आ टपके. इतने साल हो गए पैदा हुए किसीने शक नहीं किया अब सरकार प्रूफ मांग रही है. अच्छा है चार सरकारी गवाह नहीं मांगती . @#$% सब कायदे कानून पैसे खाने के ज़रिये हैं और कुछ नहीं.पचास का नोट नोटरी वाला लेगा और पचास बाबु और बन जायेंगे हम मूल निवासी.