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पानी

पानी पानी रे , तेरी माया अभी कुछ दिन पहले तक तरस रहे थे हलक सूख रहे थे अब बह रहे हैं अरे बर्तन भांडे तक बह रहे हैं ये बड़ी कॉलोनियों का पानी यहीं घुस आता है निकालते निकलते मुश्किल हो जाती है दिन तो ठीक है बहार इधर उधर बैठ बाठ लेते हैं रात में समझ नहीं अत किधर बिस्तर लगायें सुना है बड़े लोग बड़े प्लान बना रहे हैं की सारी नदियों को नहरों से जोड़ देंगे फिर सारा बारिश का पानी इकठ्ठा कर लेंगे . अच्छी प्लानिंग है भाई , जरा हमारी कालोनी की साइड भी एकाध छोटी मोटी 

राज़ की बात

कड़क टिक्कड़ मक्खन लगा के विदेशी माहौल और विदेशी नाम से 160 रुपये में भी बेच सकते हैं . आलू की टिकिया डबलरोटी के बीच फंसा के 40 रुपये में भी सस्ती है . आखिर कोका कोला और ठुम्प्स उप वाले ये क्यों नहीं बताते की आखिर वो पानी से भी सस्ती चीज लाते कहाँ से हैं। और हमें तो सिर्फ इतना ही पता चल पाता है की कभी कभी इनमे झींगुर भी   डलता है बाकि क्या कितना डालता है ये नहीं बताया जाता .  अपने तो समोसे बीस रुपये में दो भी बड़े महंगे पड़ते है  कोई ज्ञानी मेरी मंदमति पर कृपया  थोडा प्रकाश डाले  .