manhangai

ये ग़रीब आदमी का सबसे फेवरिट टोपिक है. हमेशा गुनगुनाता रहता है. हमेशा सुनसुनाता रहता है.
जब न्यूज़ में पढता है टीवी पर देखता है कि महेंगाई दर घट रही है तो उसको समझ नहीं आता कि आखिर ये चमत्कार हो कैसे रहा है और कंहाँ हो रहा है. जब रोज़ सब्जी खरीदने जाता है तो सोचता है आज दाल बना कर खा लेगा . जब दाल खरीदने जाता है तो सोचता है आज चटनी से ही खा लिया जाये. फिर ये महंगाई आखिर कहाँ पर घट रही है. बस फिर गुनगुनाना चालू , सुनसुनाना चालू.
और ये महंगाई का इंडेक्स क्या होता है. ये कौन लोग बनाते है. क्या देख के बनाते हैं. क्या खा के बनाते हैं.
जब ज्यादा सोच भेजे में चली जाती है तो शाम को गुलाब लेता है , भेजे के शोर का जुलाब करता है. और टनाटन आ के सो जाता है. सुबह उठकर वही बासी रोटी में नाश्ता पानी हो जाता है.
आजकल बड़े लोग परमाणु और आतंकवाद discuss कर रहे है. सोचता है , जब इससे फुर्सत हो जायेंगे तो फिर कुछ महंगाई का भी रास्ता लगा डालेंगे. 

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