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दिसंबर, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

rat bhar gol

बंटी जरा देख के आ अंकल के यहाँ कि भी लाइट गयी है या अपनी ही गोल हो गयी. ये लाइट वाले भी चाहे जब लाइट काट देते हैं. इनका कोई भरोसा नहीं , जब मर्जी आये तब गोल कर देते हैं. कटौती कि घोषणा तो हुई नहीं थी कि हुई थी , हो सकता है हुई हो. ले फ़ोन तो लगा जरा बिजली ऑफिस . .... *#@& फ़ोन कभी उठाते ही नहीं हैं . उठाते क्या नहीं हैं , उठा के रख देते हैं साइड में . अब इतनी रात को कौन जायेगा बिजली ऑफिस , ऑफिस भी *#@& ने कहाँ पर बना रखा है , उनकी सड़क पर ही लाइट नहीं होती. अब आप क्या कर लोगे. ये मचरों को भी कहाँ से पता चल जाता है  , चले आते हैं जुलुस ले कर . मेरा तो कुछ नहीं है बस गुड्डू को बुखार है इसलिए टेंशन होती है. पता नहीं कौन कौन से तो बुखार आ गए हैं नए नए नाम भी मालूम नहीं चलते . और तो और डॉक्टरों को भी पता नहीं कि ये *#@& बीमारी कौन सी है. टेस्ट करवा करवा के मरीज़ निपट जाता है. बुखार पता नहीं चलता कौन सा है. गुड्डू बेटा रो रो के कान मत खा जाओ , बिजली मैंने नहीं काटी है  . लो इसको चुप कराओ नहीं तो चमाट नहीं पड़ जाय  इसमें . सर उठा लिया है रो रो के. लो अब बिजली आती दिखती नहीं है

ek balti pani

आज सुबह फिर टंकर वाला गोल मर गया . अब अगली गली में जाकर collector ऑफिस वाले साहब के बंगले से मोटर का पानी खींचना पड़ेगा. दो घंटे कि तो लग गयी समझो , लाइन इतनी लम्बी होती है कि एकाध बाल्टी पानी मिल जाये तो गंगा नहाये समझो . और फिर साहब भी इस टाइम बिजी चलते हैं उन्हें ऑफिस टाइम से पहुंचना होता है. आज बिट्टू को तो बिना नहाये ही स्कूल जाना पड़ेगा. धोने जितना पानी मिल जाये बहुत है , नहाने का क्या है. वैसे भी शेर कभी नहाते हैं क्या? वो टंकर वाले का नंबर भी सामने भाभी के पास है , वो भी सुबह सुबह पता नहीं कहाँ घुमने चली गयी हैं. ये ही टाइम मिलता है लोगों को घूमने का. यहाँ पूरी पट्टी परेशान है . नगर निगम कौन जायेगा मगज पट्टी करने . नगर निगम वाले पहले तो भाव खाने में एक घंटा लगा देंगे फिर टंकर हमसे ही दूंध वाएंगे . और फिर वहां सुनता कौन है better है कि हम साहब से ही request कर लेंगे . वहां कोई बाबु मिल गया तो अभी पचीस पचास झटक लेगा .  

manhangai

ये ग़रीब आदमी का सबसे फेवरिट टोपिक है. हमेशा गुनगुनाता रहता है. हमेशा सुनसुनाता रहता है. जब न्यूज़ में पढता है टीवी पर देखता है कि महेंगाई दर घट रही है तो उसको समझ नहीं आता कि आखिर ये चमत्कार हो कैसे रहा है और कंहाँ हो रहा है. जब रोज़ सब्जी खरीदने जाता है तो सोचता है आज दाल बना कर खा लेगा . जब दाल खरीदने जाता है तो सोचता है आज चटनी से ही खा लिया जाये. फिर ये महंगाई आखिर कहाँ पर घट रही है. बस फिर गुनगुनाना चालू , सुनसुनाना चालू. और ये महंगाई का इंडेक्स क्या होता है. ये कौन लोग बनाते है. क्या देख के बनाते हैं. क्या खा के बनाते हैं. जब ज्यादा सोच भेजे में चली जाती है तो शाम को गुलाब लेता है , भेजे के शोर का जुलाब करता है. और टनाटन आ के सो जाता है. सुबह उठकर वही बासी रोटी में नाश्ता पानी हो जाता है. आजकल बड़े लोग परमाणु और आतंकवाद discuss कर रहे है. सोचता है , जब इससे फुर्सत हो जायेंगे तो फिर कुछ महंगाई का भी रास्ता लगा डालेंगे.