टीवी पे बहस के नाम पर लडैया भिडैया। सुनाने की कोई नहीं होती है, बस सुनाने की, वो भी गला फाड के । मुद्दा जैसे कोई किया शिकार बीच में पड़ा हो और दस जगह के लडैये इकट्ठे टूट पडे हों। संसद का नजारा घर घर पर। आप खुद को इटेलीजेन्ट समझो , भाई पर बाकियों को घासखाऊ न समझो. सब को मौका न दो न सही पर टीवी देखनेवालों को सुनने का मौका तो दो।

लगता है प्रोग्राम वाले जूते बाहर ही उतरवा लेते हैं वरना जूतमपैजारी भी दिखा करती । क्या पता हो भी जाती होगी , कैमरा बन्द होते ही। 

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