बच्चे

बच्चे कम्प्यूटर प्रोसेसिंग यूनिट की तरह नहीं बल्कि सामने रखे आईने की तरह होते हैं। जो आप आदेश देते हैं उन्हे वो प्रोसेस नहीं करते । जो आप उन्हें दिखते हैं वही करते है।
ये आईना है तुम्हारे करम का , हर भरम का ।
अगर आप किसी चीज को करने से रोकते है जो आप खुद करते हैं तो वो इसे नहीं करेंगे (सिर्फ आपके सामने )। (ये छिपा कर करना भी आप से ही सीखा है)
हम सिखाने में इतनी रुचि लेते हैं कि बच्चों को लगभग मूर्ख ही मानने लगते हैं । हम ये पूरी तरह भूल जाते हैं कि ये हमारी ही योनि में जन्मा है।
ये स्वभाव से ही उन्नत मानस है ।
उसे एक बेजान कम्प्यूटर की तरह नहीं आदेशित किया जा सकता ।
हम उसे भय सिखाते हैं , अक्षमता सिखाते हैं । पोलिसवाला पकड़ ले जायगा । बाहर भूत है। चॉकलेट खाने से पेट खराब हो जायेगा। इतनी मस्ती करेगा तो दाँत टूट जायेंगे । मम्मी की बात नहीं सुनेगा तो भगवान पनिशमेन्ट देगा।
माँ तुम झूठ बोलती हो। पापा आप बहुत गन्दे हो।
ये आप की किसी भी बात का, आदेश का , झल्लाहट का, फुसलाहट का कई तरह से अन्वेषण कर सकता है।
तो हमें अपनी बाल वाक मञ्जूषा का अधिहरण करना होगा।
क्यों कैसा लगा । जैसा भी लगा , वैसा ही आप के बच्चे को भी लगेगा।
क्योंकि हमने बहुत कुछ सीख रखा है इसलिए हम किसी भी बात को अलग-2 ढंग से देखते  समझते हैं। पर बच्चे ......

एकदम सपाट , सीधा , सरल , एकदम प्रत्यक्ष और अभी के अभी.......

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