हमारी दया और माया दोनों ही कैटेगराईज़्ड होती हैं. हमें पता ही नहीं होता कि जो हम बहुत अच्छी वृत्ति, कर्म, आदत मान रहे हैं , वह भी हमारे किसी स्वार्थ के छिपे हुए छन्ने से छन-छना कर निकल रही है। जब कोई मुर्गा खा रहा है , अण्डे फोड़ रहा है कितना हिंसक प्राणी लगता है दुराचार लगता है अत्याचारी। दाल भात हम प्रसाद मानते हैं देव भोज्य, कितने अण्ड दाल के कितने चावल के कभी गिनती की है। लगता है पूरी बस्ती खा रहे है। गाय का दूध तो क्या कहने हमारे लिए सर्वश्रेष्ठ खाद्य है। और हमें कैसे मिलता है ये , तुम्हारे सामने रोज पूरी थाली सजा कर लाकर रखी जाए और दो कौर खाते ही छीन ली जाए , और किसी और को तुम्हारे सामने ही खिला दी जाए और ये रोज ही होता रहे। जो हमारे लिए बैस्ट प्रोटीन है , वह समष्टि में किसी और को अलॉटेड है। लगता है बहुत अच्छी फीलिंग आ रही है, क्यों । तो क्या करें , भूखे ही मरें , अब ये मत कहना कि भूख डेली नयी डिमाण्ड वाला गली का गुण्डा है। और इस बारे में पुलिस भी कुछ नहीं कर सकती। नैवेद्यं समर्पयामि।।